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समर्पयामि रामोत्सव/ अथ किन्नर कथा संवाद पञ्चम

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समर्पयामि रामोत्सव (अथ किन्नर कथासंवाद ५)  में तीन दिवसीय प्रस्तुति में प्रथम दिवस  ग़ज़ल गायक मिथलेश लखनवी, द्वितीय दिवस साहित्य भूषण देवकीनन्दन शान्त जी ने स्वलिखित हरदौल चरित प्रस्तुत किया, तृतीय दिवस बाराबंकी से उभरती हुई गायक सुश्री अदिति वर्मा ने राम भजन प्रस्तुत किये।  यह किन्नर विमर्श का प्रथम सत्र श्रीगणेश सत्र था। अगली प्रस्तुति लेकर हम शीघ्र उपस्थित होंगे।  महेन्द्र भीष्म समर्पयामि शोधायन के तत्वावधान में  कथाकार महेन्द्र भीष्म  की अध्यक्षता में किन्नर विमर्श " अथ किन्नर कथा संवाद" का पञ्चम  सोपान जल्द ही हम लेकर आएंगे। सञ्चालक/अभिकल्पक  गीतिका वेदिका  samrpyami@gmail.com

अथ किन्नर कथा संवाद पञ्चम (1)

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आप अथ किन्नर कथा संवाद में प्रतिभाग कर रहे हैं तो कृपया  आप हम से जुड़े। आप मानते हैं कि मानवता के आयाम स्त्री व पुरुष के साथ किन्नर वर्ग को भी स्वाभिमान से जीने का अधिकार है। यदि आप सामाजिक कार्यकर्ता/ साहित्यकार/ शोधार्थी अथवा किसी भी रूप में किन्नर वर्ग की समानता के पक्षधर हैं  तो हमारे साथ जुड़ें।  ताकि न रहे दीनता और बना रहे स्वाभिमान|            || न दैन्यं न पलायनम् || १ सितम्बर, २०२०  अथ किन्नर कथा संवाद पञ्चम निम्न ईमेल पर मेल भेज कर सम्पर्क कर सकते हैं।  samrpyamifoundation@gmail.com 

'फलों का टोकरा '

https://www.facebook.com/gitika.vedika/notes जितेन की पत्नी देविका गर्भवती थी, वह समय आने ही वाला था की नन्ही जिन्दगी संसार में अवतरित होती। इस समय देविका को सबके सहयोग की जरुरत थी चाहे सासू माँ थी, या ननद रांची यानि की जितेन जी की बहन जो की शादीशुदा थी। गर्भवती होने के बावजूद देविका सारे कर्तव्य उतनी ही तत्परता से निभाती थी, इसके बाद भी न तो वह सास की प्रिय बहू बन सकी,  न नन्द की अच्छी भाभी और न ही इस योग्य उसे जितेन जी समझते थे की इस अवस्था में तो कम से कम उसका स्वाभिमान बचाते जो हर वक्त उनकी माँ और बहन रांची हनन करते रहते थे। फिर भी देविका खुश रहती थी अपने आने वाले शिशु के स्वागत के लिए। उसेअचानक सुबह चार बजे प्रसव पीड़ा होने लगी किन्तु भाग्य कहिये या लापरवाही जितेन जी ने ना तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना सही समझा न ही जननी सुरक्षा गाड़ी को बुलाया, और नन्हा सा शिशु दुनिया में अचानक आगया और बिना रोये ही एक पल में उसी  ईश्वर के पास वापस भी चला गया। देविका का सब कुछ झटके ही ख़त्म हो गया, प्रेक्टिकल जितेन जी दूसरे दिन से बिजनेस में लग गये क्योकि  उनके अनुसार तो "जाने वा
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सूने से मन आंगन में मेरे ये कौन रंगोली उकेर गया.... पतझर तो था अभी-अभी फिर कौन बहार बिखेर गया... अपना तो नही था, झौंका शायद माथे हाथ फेर गया.... लौट आये वो लम्हा देखूं जो पहले कुछ देर गया .... "साभार" वेदिका जी

अजीब शब्दों के चयन वाले व्यक्ति

आज क्यूँ न कोई ऐसी बात आप लोगों को बताऊँ जिसमें से मै खुद गुजरी हूँ| काफी दिन हुए, पास के घर में इक दीदी रहा करती थी| मुझे सम्मान भी देती थी और  वापस भी ले लिया करती  थी| कई बार उनके इम्तेहान के दिनों में मैंने उनके लिए रात में  जाग कर चाय बनायीं| उनके लिए अपना काम दरकिनार कर उनके काम से गयी| कई बार उनके श्रीमुख से ऐसे वचन सुने की नही लिख सकती यहाँ| दीदी मुझे जब भी याद करती थीं मै उन तक पहुच जाती थी कि उन्हें तकलीफ न हो  और तो और उनकी कुछेक परेशानियाँ मेरे परिवार ने भी सहीं, सिर्फ इसलिए ही की उन को मैंने अपनी "दीदी" कहा था| इक दिन मुझे अचानक से लगा कि दीदी मुझे देख कर न देखने की कोशिश करती है, अब मुस्कराती भी नहीं, और अगर मै  मुस्कराने की पहल करती तो वे मुझे खुद में ही लज्जित करा देती थी| ये भी बता दूँ की "दीदी" के अपने गृह-नगर लौटने के दिन करीब थे| और मुझसे सम्बन्धित सारे काम ख़त्म हो चुके थे या अब मेरी  उपयोगिता उनके पास नहीं रही.....हाँ तो ; मैंने सोचा की मै अपने अनुमान लगाने की बजाये खुद उन्ही से पूँछ लूँ कि मुझसे ऐसी क्या गलती हो गयी है.......तो दीदी ने कहा &q

थीम अच्छी है

पिछले दिनों इक अतिथि घर पर आये| वे बचपन से ही मुझे या मेरे साथ वालों को किसी लायक नहीं समझते| लेकिन वे अपने घर की बेटियों को बहुत अच्छी सोच का, समझते है| चाहे उनकी बेटियां किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचे| बात हो रही थी इक फिल्म के बारे में "my name is khan" तो मुझसे पूंछा गया की क्या है इस फिल्म में ? मैंने कहा "थीम अच्छी है" तो मुझे तुरंत लौट के जबाब मिला "थीम अच्छी चाहिए तो "श्रवण कुमार , हरिश्चंद्र" पढो| मै अवाक् रह गयी| ये वही इन्सान थे जिनकी माँ दर-ब-दर परेशान होती रही| उनकी मृत्यु बहुत बुरे हालातों में हुयी| लेकिन यदि उनकी बेटियों ने कोई भी टिप्पणी दी होती तो उसे वो जरुर उत्साहित करते| मै समझ नही पाती हूँ उनको कभी|  मेरे ख्याल से कोई भी वैश्विक विषय व्यर्थ नहीं है| अगर हम किसी विषय की चर्चा करते है तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं की हम दूसरे विषयों की अवहेलना कर रहे है| कई साल पहले वे हमारे घर पधारे, मेरी माँ ने उन्हें बताया की "मेरी बेटी बहुत अच्छी कवितायेँ लिखती है| बोले दिखाओ , तो मैंने दस कवितायेँ थमा दी| बोले और है की इतनी ही ? मैंने ४५ पन्ने द

दाँत काटी रोटी

बात है एक मेरी परिचिता "सेंगर आंटी" और उनकी सहेली "विजया चाची"|  दोनों की आपस में बहुत बनती थी , जिसे हिंदी की एक उक्ति में कहते है "दाँत काटी रोटी" | मतलब यूँ की अधिकतर "रोटी" बनती थी विजया चाची के घर और "काटने" जाती थी   सेंगर आंटी| सेंगर  आंटी के ५ बच्चे थे , पति एक सिपाही और शराबी और जुआरी था | जो हर माह बच्चों की फीस से जुआ खेलता था | खाने का शौकीन वह आदमी नॉनवेज पार्टी का भी गुलाम था चाहे घर में भर पेट अन्न न हो | तब सेंगर आंटी ने अपनी राम कहानी विजया चाची को सुनकर उनका ह्रदय द्रवित कर दिया | विजया चाची एक स्थापित कपड़ों की दुकान की मालकिन थी सो अपने आर्थिक फैसले खुद करने में माहिर | अब वे आये गये समय सेंगर आंटी की मदद कर दिया करती | चाहे मामला स्कूल-फीस का हो या उनके घर का सिलेंडर ख़त्म हो गया हो| या फिर उन्हें किसी दिन रुपयों की जरूरत पड़ जाती या फिर किसी कोई बड़ी चीज बाज़ार से विजया चाची की साख पर उधार लेना हो| फिर चाहे लेनदार विजया चाची को "सुनाकर" चला जाता | मै हमेशा विजया चाची से पूछा करती कि आप कैसे अपने घर से पैसे