Posts

Showing posts from February, 2010

थीम अच्छी है

पिछले दिनों इक अतिथि घर पर आये| वे बचपन से ही मुझे या मेरे साथ वालों को किसी लायक नहीं समझते| लेकिन वे अपने घर की बेटियों को बहुत अच्छी सोच का, समझते है| चाहे उनकी बेटियां किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचे| बात हो रही थी इक फिल्म के बारे में "my name is khan" तो मुझसे पूंछा गया की क्या है इस फिल्म में ? मैंने कहा "थीम अच्छी है" तो मुझे तुरंत लौट के जबाब मिला "थीम अच्छी चाहिए तो "श्रवण कुमार , हरिश्चंद्र" पढो| मै अवाक् रह गयी| ये वही इन्सान थे जिनकी माँ दर-ब-दर परेशान होती रही| उनकी मृत्यु बहुत बुरे हालातों में हुयी| लेकिन यदि उनकी बेटियों ने कोई भी टिप्पणी दी होती तो उसे वो जरुर उत्साहित करते| मै समझ नही पाती हूँ उनको कभी|  मेरे ख्याल से कोई भी वैश्विक विषय व्यर्थ नहीं है| अगर हम किसी विषय की चर्चा करते है तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं की हम दूसरे विषयों की अवहेलना कर रहे है| कई साल पहले वे हमारे घर पधारे, मेरी माँ ने उन्हें बताया की "मेरी बेटी बहुत अच्छी कवितायेँ लिखती है| बोले दिखाओ , तो मैंने दस कवितायेँ थमा दी| बोले और है की इतनी ही ? मैंने ४५ पन्ने द...

दाँत काटी रोटी

बात है एक मेरी परिचिता "सेंगर आंटी" और उनकी सहेली "विजया चाची"|  दोनों की आपस में बहुत बनती थी , जिसे हिंदी की एक उक्ति में कहते है "दाँत काटी रोटी" | मतलब यूँ की अधिकतर "रोटी" बनती थी विजया चाची के घर और "काटने" जाती थी   सेंगर आंटी| सेंगर  आंटी के ५ बच्चे थे , पति एक सिपाही और शराबी और जुआरी था | जो हर माह बच्चों की फीस से जुआ खेलता था | खाने का शौकीन वह आदमी नॉनवेज पार्टी का भी गुलाम था चाहे घर में भर पेट अन्न न हो | तब सेंगर आंटी ने अपनी राम कहानी विजया चाची को सुनकर उनका ह्रदय द्रवित कर दिया | विजया चाची एक स्थापित कपड़ों की दुकान की मालकिन थी सो अपने आर्थिक फैसले खुद करने में माहिर | अब वे आये गये समय सेंगर आंटी की मदद कर दिया करती | चाहे मामला स्कूल-फीस का हो या उनके घर का सिलेंडर ख़त्म हो गया हो| या फिर उन्हें किसी दिन रुपयों की जरूरत पड़ जाती या फिर किसी कोई बड़ी चीज बाज़ार से विजया चाची की साख पर उधार लेना हो| फिर चाहे लेनदार विजया चाची को "सुनाकर" चला जाता | मै हमेशा विजया चाची से पूछा करती कि आप कैसे अपने घर से पैसे...

दाँत-दर्द...

आजकल मै दाँत-दर्द से परेशान हूँ| इसी सिलसिले में  डॉक्टर  को अपनी आपबीती सुनाने गयी   डॉक्टर  ने बहुत प्यार से सारी बात सुनी और मुझे उस कुर्सी पर बैठने को कहा जिसका रंग तो गुलाबी था लेकिन पास में एक मशीनों का गुच्छा था| गुलाबी  रंग  की परवाह करते हुए मै बैठ तो गयी लेकिन मशीनों को देखते हुए डर लगा  लेकिन मुझे जल्दी ही आश्वस्त करा दिया गया कि वे मेरे भले के लिए है| मुझे विश्वास हो गया कि वे  " दीवार खोदने वाली मशीनों की दिखने वाली चीजों "  में  मेरी भलाई छुपी है|  जल्द ही डॉक्टर साहिबा  ने मुझे इंजेक्शन लगा कर दर्द की उस जड़ को समूल उखाड़ फेंका जिसे मै कीड़े वाला दाँत कहती थी|  दवाई लगा कर मै घर आ गयी|  इंजेक्शन के कारण मेरा सूजा हुआ मुंह मेरे घर के लोगों के लिए हंसी का सबब बना लेकिन मै उनके साथ नहीं हंस सकी क्योंकि मेरे हसने के औजार घायल थे| जिस कारण मैं ईर्ष्यालु भी कहलाई गयी क्योंकि मै अपने लोगों की ख़ुशी में शरीक नहीं थी | लेकिन मेरा दोष तो कतई नहीं माना जा सकता , क्योकि मेरे अलावा और भी लोग होते होंगे जो दूसरो...

एक दिन

Image
मै हमेशा से चाहती थी कुछ बातें उन अपनों से बताना जो उनके लिए मेरे बहाने से सार्थक साबित हो, ये सार्थकता कभी एक अनुभव हो तो कभी मनोरंजन , कभी समय व्यतीत होने की साम्रगी हो तो कभी कोई मर्म-स्पर्शी बात | इसी सन्दर्भ में अपनी कुछ बातें आप लोगो से कहना चाहूगी | " एक दिन मै बैंक गयी थी अपने काम को निपटा कर वापस ही लौट रही थी की मेरी एक परिचिता मुझे मिली और उन्होंने अपने काम के लिए मुझसे पेन माँगा | शिष्टचार के नाते मैंने उन्हें अपना कीमती और उपहार में मिला हुआ पेन दे दिया | उन्होंने लेते हुए एक मुसकान दी  और अपना काम ख़त्म करके वह पेन द्वारपाल को दे दिया | मै जब तक वहीं रुकी रही तो मेरे तरफ देखते हुए उन्होंने कहा - "अरे वेदिका   तुम अभी तक गयीं नहीं ? " " नहीं " मै अपने उस पेन को वापस लेने के लिए रुकी हूँ जो आप ले गयी थी " मैंने उत्तर दिया | " ओह " उन्होंने प्रतिउत्तर देते हुए कहा  "उस पेन में ऐसा क्या खास है ? " तो मैंने हल्के गुस्से में कहा कि   " कि वो मेरा पेन है साथ ही बेशकीमती भी " | तब उन्होंने जो उत्तर दिया उसके बाद मेरे ...