
सूने से मन आंगन में मेरे
ये कौन रंगोली उकेर गया....
पतझर तो था अभी-अभी
फिर कौन बहार बिखेर गया...
अपना तो नही था, झौंका
शायद माथे हाथ फेर गया....
लौट आये वो लम्हा देखूं
जो पहले कुछ देर गया ....
"साभार" वेदिका जी
ये कौन रंगोली उकेर गया....
पतझर तो था अभी-अभी
फिर कौन बहार बिखेर गया...
अपना तो नही था, झौंका
शायद माथे हाथ फेर गया....
लौट आये वो लम्हा देखूं
जो पहले कुछ देर गया ....
"साभार" वेदिका जी
बहुत खूब!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार अनूप जी!
Deleteसराहना से मेरी रचना को उर्जा मिली