दाँत-दर्द...
आजकल मै दाँत-दर्द से परेशान हूँ| इसी सिलसिले में डॉक्टर को अपनी आपबीती सुनाने गयी डॉक्टर ने बहुत प्यार से सारी बात सुनी और मुझे उस कुर्सी पर बैठने को कहा जिसका रंग तो गुलाबी था लेकिन पास में एक मशीनों का गुच्छा था| गुलाबी रंग की परवाह करते हुए मै बैठ तो गयी लेकिन मशीनों को देखते हुए डर लगा लेकिन मुझे जल्दी ही आश्वस्त करा दिया गया कि वे मेरे भले के लिए है| मुझे विश्वास हो गया कि वे " दीवार खोदने वाली मशीनों की दिखने वाली चीजों " में मेरी भलाई छुपी है|
जल्द ही डॉक्टर साहिबा ने मुझे इंजेक्शन लगा कर दर्द की उस जड़ को समूल उखाड़ फेंका जिसे मै कीड़े वाला दाँत कहती थी| दवाई लगा कर मै घर आ गयी| इंजेक्शन के कारण मेरा सूजा हुआ मुंह मेरे घर के लोगों के लिए हंसी का सबब बना लेकिन मै उनके साथ नहीं हंस सकी क्योंकि मेरे हसने के औजार घायल थे| जिस कारण मैं ईर्ष्यालु भी कहलाई गयी क्योंकि मै अपने लोगों की ख़ुशी में शरीक नहीं थी | लेकिन मेरा दोष तो कतई नहीं माना जा सकता , क्योकि मेरे अलावा और भी लोग होते होंगे जो दूसरों की खुशी में नही शामिल होते होंगे वैसे भी कलियुग का जमाना है , खैर .....! इन सब के बाद मैंने इन लोगों से बदला भी लिया वो भी इस तरह की मैंने इन सब लोगों के साथ चटपटा मसाले - दार खाना न खाकर अपना सीधा सा सादा सा नमक और घी मिला हुआ सात्विक दलिया खाया|
ओह ! इन सब बातों के कुचक्र में पड़ कर एक प्रमुख बात तो बताना ही भूल गयी | हुआ ये दाँत उखाड़ने के बात डॉक्टर साहिबा ने हिदायत दी थी " वेदिका जी कभी भी कोई दाँत नही उखाड़वाइयेगा , दांतों की जड़े कमजोर होती है "
- वेदिका
bhagavaan bachaaye is daant ke dard se
ReplyDeleteहा हा हा हा दांत दर्द और दलिया दोनो से डरता हूं...
ReplyDeleteaisa dard kiso ko hoye.
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