
सूने से मन आंगन में मेरे ये कौन रंगोली उकेर गया.... पतझर तो था अभी-अभी फिर कौन बहार बिखेर गया... अपना तो नही था, झौंका शायद माथे हाथ फेर गया.... लौट आये वो लम्हा देखूं जो पहले कुछ देर गया .... "साभार" वेदिका जी
ताकि न रहे दीनता और बना रहे स्वाभिमान|