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'फलों का टोकरा '

https://www.facebook.com/gitika.vedika/notes जितेन की पत्नी देविका गर्भवती थी, वह समय आने ही वाला था की नन्ही जिन्दगी संसार में अवतरित होती। इस समय देविका को सबके सहयोग की जरुरत थी चाहे सासू माँ थी, या ननद रांची यानि की जितेन जी की बहन जो की शादीशुदा थी। गर्भवती होने के बावजूद देविका सारे कर्तव्य उतनी ही तत्परता से निभाती थी, इसके बाद भी न तो वह सास की प्रिय बहू बन सकी,  न नन्द की अच्छी भाभी और न ही इस योग्य उसे जितेन जी समझते थे की इस अवस्था में तो कम से कम उसका स्वाभिमान बचाते जो हर वक्त उनकी माँ और बहन रांची हनन करते रहते थे। फिर भी देविका खुश रहती थी अपने आने वाले शिशु के स्वागत के लिए। उसेअचानक सुबह चार बजे प्रसव पीड़ा होने लगी किन्तु भाग्य कहिये या लापरवाही जितेन जी ने ना तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना सही समझा न ही जननी सुरक्षा गाड़ी को बुलाया, और नन्हा सा शिशु दुनिया में अचानक आगया और बिना रोये ही एक पल में उसी  ईश्वर के पास वापस भी चला गया। देविका का सब कुछ झटके ही ख़त्म हो गया, प्रेक्टिकल जितेन जी दूसर...